Sunday, October 26, 2014

gazal 1

ये रोशनियाँ दिवाली की। .
ये रंग भरे रंगोली के।
बस दिल की कलियाँ
बंद यहां ;इन्हे देखकर भी न खुले।

खामोश हैं मन.… खामोश नजर.... .
खामोश हैं सपनोंके मंजर
बस बात कोई हैं सीने में।
क्या गम है छुपा हमको न ख़बर।

हम खुश थे पहले जीने में।
फिर आज ये  क्यों अफ़सोस यहाँ ?
शायद पहले जो सुकूँ  मिला। .
अब ये उसके हर्जाने हैं।

दिल खाली हैं;सुनसान पड़ा।
क्यों हैं ऐसी मँझधार कड़ी !
शायद दिल अब ये जान गया।
के नहीं जिंदगी  ;प्यार भरी।

__________€€ hd €€___________




Wednesday, October 22, 2014

katarwel.......


अजुनी मनांत जळती त्या एकट्या मशाली ।
ते ताप अजून त्यांचे अन राख साचलेली …
ओसंडत्या धुक्याचे उरले उदास शेष ….
अश्रुंमधून ढळती ते हरवले निमेष …।

काही उरात उरते निर्भान वेदनांचे ….
अजुनी खुशाल घुमते भयगान यातनांचे …
एकेक पाकळीला वेचून वादळाने …
नेले उजाड झाली संताप दग्ध राने . !

हरवून  वाट गेली ओल्या सुखी नद्यांची
उरली तीरांवरुनी रेती जुन्या जलांची ….
आरक्त अभ्र वरती झुलते उगाच वेडे …
त्याच्या दहा दिशांना अंधार घाली वेढे …!!

______€€€€€€€____________ हर्षल